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शिल्पकर्म एक ब्राह्मण कर्म

शिल्पकर्म एक ब्राह्मण कर्म *शिल्पकर्म* की उत्पत्ति वेदांग कल्प के शुल्ब-सूत्र से हुई है और वास्तुकला की उत्पत्ति वेदांग ज्योतिष की संहिता स्कंध से हुई है। वेदांग ग्रंथों का अध्ययन करना ब्राह्मणो का प्रमुख कर्तव्य आदिकाल से रहा है। शुल्ब-सूत्र से यज्ञवेदी (यज्ञकुंड), यज्ञशाला, यज्ञमंडप, यज्ञपात्र, मूर्ति आदि का निर्माण होता हैं। जो ब्राह्मण शुल्ब-सूत्र में निहित शिल्पकर्म नहीं जानता वो ये निर्माण नहीं कर सकता । जो ब्राह्मण शिल्पकर्म नहीं जानता उसे यज्ञ करने का अधिकार भी नहीं है क्योंकि आदिकाल से लेकर अब तक वैदिक यज्ञों में यज्ञशाला, यज्ञमंडप, यज्ञवेदी, यज्ञपात्र आदि शिल्पकर्म से ब्राह्मण ही निर्मित करते आए हैं। इसलिए ब्राह्मणों के द्वारा किए जाने वाले शिल्पकर्म को ब्रह्मशिल्प कर्म भी कहा जाता है औऱ ऐसे ब्राह्मणों को ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मण भी कहा जाता हैं। वास्तुकला से बड़े बड़े नगर, दुर्ग, किले, देवालय (मंदिर), महल, वापी, कूप, बावड़ी, तालाब,बड़े बड़े जलाशय आदि का निर्माण होता है। जिन ब्रह्मशिल्प कर्मो का निर्वहन आज भी विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मण पाँच प्रकार के शिल्पकर्मो के माध्यम से करते आ र

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