Who are the Vishwakarma Vaidik Brahmins?


Vaidik Vishwakarma Brahmin





The original Vedic conception of the cosmos was different from the later brahminic one. It was called 'Visvabrahmam' created by visvakarma, the demiurge of Brahma. It is interesting to notice that this cosmos was oragnised on the principle of 'five' or 'pancha'bootha ( Earth, Water, Fire, Wind, Sky ). Accordingly the Brahma/Visvakarma originally had five faces. He had five children from whom the five groups of the artisan community took birth. There were originally five Vedas with Pranava Veda as the last one. It was suppressed by the later brahmins but retained its essence as the one-word mantra of OM.

The various aspects of mundane life also came to be ordered on this principle of five. The land of Indus where they lived itself was Panjab, 'the land of five rivers'. They followed an egalitarian administration based on the rule of five called 'panchayat', which constitutes the basic unit of civil administration even at present in India.1I panchaguna (five qualities), panchakalyani (a peculiar horse), 'Panchavadyam' (five musical instruments), 'panchakarma' (five practices of Ayurvedic medicine), 'panchgavya' (a sacred food made of the five products of cow), 'pancharatna' (five diamonds), 'panchangam' (the Five-part Indian astrological calendar), 'panchamrutam' (food made of five sweet edibles), 'panchadukham' (five sorrows), 'panjaguna' ( sight, touch, hearing, smell, and taste ) and 'panjabrahmana' ( manu, maya, twoshta, shilpi, viswajna ) were some of the five-based 'panjagotra' ( Sanaga, Sanatana, Abhuvana, Pratanasa, Suparna ) aspects of this prelapsarian reality with the 'panjavedas' ( Rig veda, Yajur veda, Sama veda, Atharva veda, Pranava veda ).

Vishwakarma Vaidik Brahman refers to a community of Brahmins in India who follow the Vedic tradition and are associated with the Vishwakarma deity. They are believed to be descendants of the Hindu god Vishwakarma, who is considered to be the divine architect and engineer in Hindu mythology. Vaidik Vishwakarma Brahmins are followers of all "five vedas" known as Rigveda, Atharva veda, Sam veda, Yajur veda & Pranav Veda (Also know as Shushumna Veda & Gupt Veda). Some Famous panchvedis in Vishwakarma Community are Ganapathy Acharya etc.

Members of this community are traditionally involved in various professions related to architecture, engineering, and craftsmanship, including carpentry, metalworking, and masonry. They are also known for their skills in sculpture, painting, and other art forms.

The Vaidik Vishwakarma Brahman community is primarily found in regions of India. They have their own customs and rituals, and their social structure is based on the traditional caste system of Hinduism.

It is important to note that while the Vaidik Vishwakarma Brahman community is associated with the Vedic tradition and the Vishwakarma deity, not all members of this community may adhere strictly to Vedic practices or beliefs.

Vishwakarma Brahmins, also known as Vishwabrahmins or Vishwakarmas, are a community of Brahmins in India who are associated with the Vishwakarma deity. The name "Vishwakarma" means "all-accomplishing, all-creating" and refers to the Hindu god who is believed to be the divine architect and engineer in Hindu mythology.

Members of this community are traditionally involved in various professions related to architecture, engineering, and craftsmanship, including carpentry, metalworking, and masonry. They are also known for their skills in sculpture, painting, and other art forms. In addition, some Vishwakarma Brahmins also work as priests, teachers, and scholars.

They have their own customs and rituals, and their social structure is based on the traditional caste system of Hinduism.

While there are many sub-castes within the Vishwakarma Brahmin community, they are united by their shared devotion to the Vishwakarma deity and their traditional occupations. Many Vishwakarma Brahmins also follow Vedic practices and rituals, although this may vary depending on the region and individual beliefs.

Some Strong Evidence -

1)





2. Wikipedia - Type "Sharma" Wikipedia in hindi 

3. Some Quotation From Ved & Puran

*विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के शास्त्रीय एवं शिल्पकर्म एक ब्राह्मण कर्म के प्रमाण*

किं करोषि दिवारात्रौ ब्रूहि त्वं पृच्छतो मम ।।
पांचालो ब्राह्मणसुतो वाणिज्यं च समाश्रितः ।।
   - (वराह महापुराण अध्याय - १७६,श्लोक - १६)
अर्थात - (तीर्थ स्नान करने हेतु आए सुमंतु नामक एक आदमी पूछता है कि ) रात दिन यही रहके आप क्या कर रहे है , आप कौन है ! तब पांचाल ने कहा मैं पांचाल ब्राह्मण का पुत्र हूँ और यहाँ पर अपना व्यापार करता हूँ ।

पद्मपुराण में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को सर्व शास्त्रों का ज्ञाता कहा गया है ;
पंचाल इति लोकेषु विश्रुतः सर्वशास्त्रवित्॥
 (पद्मपुराण/खण्डः१(सृष्टिखण्ड)/अध्याय-१०,श्लोक - ११६)
अर्थात - पांचाल (पांचाल ब्राह्मण) जो इस लोक में सभी शास्त्रों के विद्वान के रूप में जाने जाते हैं। 

इष्टकाश्च यथान्यायं कारिताश्च प्रमाणतः।
चितोऽग्निर्ब्राह्मणैस्तत्र कुशलैः शुल्बकर्मणि॥
 - (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग - १४,श्लोक -२८)
अर्थात - यज्ञ हेतु अग्निकुंड में ईंटें नियम और मानकों के अनुसार बनाई गई थीं। शुल्ब-सूत्र से उत्पन्न शिल्पकर्म मे निपुण ब्राह्मणों द्वारा इन ईंटो से अग्निकुंड बनाकर अग्नि स्थापित की गईं। 

आचारहीनान्न पुनंति वेदा यद्यप्यधीताः सह षद्भिरङ्गैः।
शिल्पं हि वेदाध्ययनं द्विजानां वृत्तं स्मृतं ब्राह्मणलक्षणं तु। -(भविष्यपुराण ब्राह्मपर्व-१, अध्याय - ४१,श्लोक - ७)
अर्थात - वेदों का अध्ययन छ: अंगों द्वारा होते हुए भी सदाचार से रहित व्यक्ति को शुद्ध नहीं करता। शिल्पकर्म के लिये वेदों का अध्ययन द्विज रूपी ब्राह्मणों के कर्म एवं लक्षण हैं।

स एव ब्राह्मणो भूत्वा भुवि कारुर्बभूव ह ।
नृपाणां च गृहस्थानां नानाशिल्पं चकार ह ।।
   - (ब्रह्मवैवर्तपुराण/खण्डः १ (ब्रह्मखण्डः)/अध्यायः १०,श्लोक - ६८)
अर्थात - वह ब्राह्मण पृथ्वी पर कारू शिल्पी अर्थात बढ़ई शिल्पी बना। उन्होंने राजाओं के घरों के लिए विभिन्न शिल्प भी बनाए।
 
वसन्ते ब्राह्मणोऽग्निमादधीत ग्रीष्मे राजन्यः शरदि वैश्यो वर्षासु रथकार इति॥
     - (बौधायनश्रौतसूत्रम्/प्रश्नः २४/१६)
अर्थात - वसंत ऋतु में ब्राह्मण , ग्रीष्म काल में क्षत्रिय, शरद ऋतु में वैश्य लोग , वर्षाऋतु में रथकार ब्राह्मण (विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण) को अग्नि का आधान करके यज्ञ करने के नियम बताए गए हैं।

यस्यां वेदिं परिगृहणन्ति भूम्यां यस्यां यज्ञं तन्वते विश्वकर्माण:।
यस्यां मीयन्ते स्वरव: पृथिव्यामूर्ध्वा: शुक्रा आहुत्या: पुरस्तात् ॥ सा नो भूमीर्वर्धयद् वर्धमाना ॥
        - (अथर्ववेद कांड-१२ , सूक्त-१, मंत्र-१३)
अर्थात - जिस भूमि पर सभी ओर वेदिकाऍ (यज्ञकुण्डों) का निर्माण करके विश्वकर्मादि(ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मण) यज्ञ का विस्तार करके यज्ञ करते हैं। जहाँ शुक्र (स्वच्छ या उत्पादक) आहुतियों के पूर्व यज्ञीय आधार स्थापित किए जाते हैं तथा यज्ञीय उद्घोष होते हैं। वह वर्धमान भूमि हम सब का विकास करे।

वर्तमानः स्वयं धीमान् ब्राह्मणो वेदवित्तमः।
गुरोस्तु पाञ्चरात्रज्ञात् पञ्चकालपरायणात्।।
    - (प्रश्नसंहिता/अध्याय - ५१, श्लोक - २५)
अर्थात - वर्तमान स्वयं एक धीमान(बुद्धिमान) ब्राह्मण (विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण) और वेदों का ज्ञाता है। गुरु से जो पाँच रातों को जानता है और पाँचों समय के लिए समर्पित है।

वास्तुदैवतकर्माणि विधिना कारयन्ति च ।
स्थपतीनथ गोविन्दस्तत्रोवाच महामतिः ।। 
(हरिवंशपुराण/पर्व २ (विष्णुपर्व)/अध्यायः ०५८,श्लोक - १३)
अर्थात - वे (विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण) निर्धारित कर्मकांडों के अनुसार वास्तु और देवता के पूजा अनुष्ठान भी करते हैं। तब महान बुद्धिजीवी गोविन्द ने स्थपति (ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मण) को सम्बोधित किया।

एष एव परो देवो विश्वकर्मा महेश्वरः।
हृदये संनिविष्टं तं ज्ञात्वैवामृतमश्नुते ॥
   - (शिवपुराण/संहिता ७ (वायवीयसंहिता)/पूर्व भाग/अध्याय - ०६ , श्लोक - ३८)
अर्थात - ऐसे विश्वकर्मा सर्वोच्च देवता हैं महेश्वर अर्थात महान ईश्वर हैं। उन्हें अपने हृदय में निवास करने वाला जानकर वो व्यक्ति अमृत तत्व को प्राप्त करता है।

विचित्रम्मण्डपं गेहेऽकार्षीत्तस्य तदाज्ञया।
विश्वकर्मा महामायी नानाश्चर्यमयं विभो॥
  - (शिवपुराण/संहिता २ (रुद्रसंहिता)/खण्डः ३ (पार्वतीखण्ड)/अध्यायः ४१ श्लोक - ४५) 
अर्थात - उनके आग्रह पर उन्होंने अपने घर में एक अद्भुत मंडप बनवाया , हे पराक्रमी देवाचार्य भगवान विश्वकर्मा आप महान माया को फैलाने वाले और विभिन्न आश्चर्यों अर्थात चमत्कारों से भरे हुए हैं।

4). *देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा के वेद-शास्त्रों से प्रमाण* 

बृहस्पतेस्तु भगिनी वरस्त्री ब्रह्मचारिणी ।
योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता विचरत्युत ।
प्रभासस्य तु सा भार्या वसूनामष्टमस्य तु ॥
विश्वकर्मा महाभागस्तस्यां जज्ञे प्रजापतिः।
कर्ता शिल्पसहस्राणां त्रिदशानां च वार्धकिः॥
  - (विष्णुपुराण/प्रथमांश/अध्याय -१५, श्लोक - ११८-११९)
अर्थात - देवगुरु बृहस्पति की बहन वरस्त्री(भुवना), जो ब्रह्मचारिणी थी और सिद्ध योगिनी थी तथा अनासक्त भाव से समस्त भूमंडल में विचरती थी, वो आठवें वसु प्रभास की धर्मपत्नी हुई। उन्हीं के पुत्र रूप में सहस्त्रों शिल्पों के कर्ता , देवताओं के शिल्पी एवं आचार्य  महाभाग्यशाली प्रजापति त्वष्टा विश्वकर्मा (भौवन विश्वकर्मा) प्रकट हुए।

विश्वकर्मा चतुर्बाहुरक्षमालां च सूत्रकम् ।
गजं कमण्डलुं धत्ते त्रिनेत्रो हंसवाहनः ।।
  - (लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्ड - २/अध्याय - १४२, श्लोक - १०)
अर्थात - चार भुजाओं वाले देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी ने रक्षमाला और एक सूत का धागा (जनेऊ) धारण किया है। उनके पास एक हाथी और एक जलपात्र है, उनकी तीन आंखें हैं और एक हंस है। 

देवाचार्यस्य महतो विश्वकर्मस्य धीमतः।
विश्वकर्मात्मजश्चैव विश्वकर्ममयः स्मृतः॥
   - (वायुपुराण/उत्तरार्धम्/अध्याय - २२, श्लोक - २०)
  अर्थात - महान और धीमान अर्थात बुद्धिमान विश्वकर्मा देवताओं के आचार्य (गुरु) हुए हैं और उनके पुत्र भी उन्हीं के समान गुणों वाले हुए।

देवाचार्यस्य तस्येयं दुहिता विश्वकर्मणः।
सुरेणुरिति विख्याता त्रिषु लोकेषु भामिनी ॥
  - (स्कन्दपुराण/खण्ड - ७ (प्रभासखण्ड)/प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम्/अध्याय - ११, श्लोक - ७५)
अर्थात - देवताओं के आचार्य विश्वकर्मा की सुंदर पुत्री जो है वो तीनों लोकों में सुरेणु के नाम से प्रसिद्ध है।  

तस्मिन्नेव ततः काले शिल्पाचार्यो महामतिः।
विश्वकर्मा सुरश्रेष्ठः कृष्णस्य प्रमुखे स्थितः॥
 (हरिवंशपुराण/पर्व २ (विष्णुपर्व)/अध्याय - ५८,श्लोक - २२) 
अर्थात - उसी क्षण देवताओं में श्रेष्ठ महान बुद्धिजीवी देवताओं के शिल्पी के आचार्य विश्वकर्मा जी भगवान कृष्ण के सामने प्रकट हुए। 
शातनं तेजसो मेऽद्य क्रियतामिति भास्करः।
*तञ्चाह विश्वकर्माणं संज्ञायाः पितरं द्विज॥
   - (मार्कण्डेयपुराण/अध्यायः- ७७/श्लोक - ४१)
अर्थात - संज्ञा के पिता विश्वकर्मा जी से सूर्य ने कहा - हे ब्राह्मण , आप मेरा तेज घटा दीजिये।

*परमात्मा विश्वकर्मा के वेद-शास्त्रों में प्रमाण* 

विश्वकर्मनमस्तेस्तु विश्वात्मा विश्वसंभव।
विष्णो विष्णो हरे कृष्ण वैकुंठ पुरुषोत्तम ॥
 -(महाभारत शांतिपर्व युधिष्ठिर उवाच अध्याय-४३ श्लोक - ५)
अर्थात - तुम ही विष्णु, विष्णु हो, तुम ही हरे कृष्ण हो, वैकुंठ हो , तुम ही पुरुषोत्तम हो, तुम ही विश्वात्मा हो और जगत को उत्पन्न करने वाले हों। इससे हे विश्वकर्मा आपको नमस्कार है।

विश्वकर्मा विमना आद्विहाया धाता विधाता परमोत संदृक् ।
तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रा सप्तऋषीन्पर एकमाहुः ॥
   - (ऋग्वेद मंडल - १०, सूक्त - ८२, मंत्र - २)
अर्थ - वो महान विश्वकर्मा जिसका समस्त जग को निर्माण करने का कार्य है और जो अनेक प्रकार के विज्ञान से युक्त ,समस्त पदार्थों में व्याप्त ,सबका धारण पोषण करनेवाला एवं रचने वाला, सबको एक समान देखने वाला , सबसे उत्तम जो है और जो परमात्मा अद्वितीय है वैसा कोई और नहीं है। विद्वान लोग कहते हैं वो सप्तऋषियों से भी ऊंचे स्थान पर स्थापित है औऱ उनकी अभिलाषाओ को हव्यान्न द्वारा पूर्ण करते हैं। 

विश्वकर्मा ह्यहं साक्षात्परमात्मा परात्परः।
उदरेऽहं न वत्स्यामि यतोऽहं वै सनातनः॥
   (पद्मपुराण/खण्ड - ६ (उत्तरखण्डः)/अध्याय - १७४,श्लोक - ३६) (भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद संवाद)
अर्थात - मैं विश्वकर्मा हूँ साक्षात परमात्मा अर्थात सर्वोच्च आत्मा हूँ , पारलौकिक सर्वोच्च हूँ। मैं गर्भ में नहीं निवास करता क्योंकि मैं शाश्वत सनातन हूँ अर्थात मैं ही आदि, मध्य और अंत हूँ। 

यज्ञपतिमृषयः एनसाहुर्निर्भक्तं प्रजा अनुतप्यमानम् ।
मथव्यान्त्स्तोकान् अप यान् रराध सं नष्टेभिः सृजतु विश्वकर्मा ॥ - (अथर्ववेद कांड - २, सूक्त - ३५, मंत्र - २)
अर्थात - प्रजाओ के विषय में अनुताप करने वाले यज्ञपति विश्वकर्मा को ऋषिगण पाप से अलग बताते हैं। जिन यज्ञपति विश्वकर्मा ने सोमरस की बूंदों को आत्मसात किया है ,वे विश्वकर्मा परमात्मा उन बूंदों से हमारी यज्ञ को संयुक्त एवं पूर्ण करें।

न ब्रह्मा नैव विष्णुश्च न रूद्रो न च देवता:।
एक एव भवेद्विश्वकर्मा विश्वाभि देवता ॥ 
   - (श्रीमहाविश्वकर्मपुराण अध्याय - २, श्लोक -११)
अर्थ - न ब्रह्मा थे , ना विष्णु थे , ना हि रुद्र शंकर थे तथा अन्य कोई देवता नहीं था, उस सर्व शून्यकाल में समस्त विश्व-ब्रह्मांड को अपने में ही आवृत अर्थात समाये हुये सबका पूज्य केवल एक ही विश्वकर्मा परमेश्वर परब्रह्म विद्यमान थे ।

नमस्ते सर्वभूतात्मन् सर्वशक्तिधराव्यय ।
विश्वकर्मन् नमस्तेऽस्तु त्वां वयं शरणं गताः ॥
  - (श्रीमद्भागवतपुराण/स्कन्ध - १०/उत्तरार्ध/ अध्याय - ६८ श्लोक - ४८)
 अर्थात - हे सर्व शक्तियों को धारण करने वाले सभी प्राणियों के स्वरूप अविनाशी ईश्वर ! हे विश्व के निर्माण करने वाले विश्वकर्मा मैं आपको नमस्कार करता हूँ! मैं आपकी शरण में आया हूँ आप मेरी रक्षा करें।

विश्वकर्मा विश्वधर्मा देवशर्मा दयानिधि:॥

 -(गर्ग संहिता बलभद्रखण्ड 13/52)

अर्थात - विश्वकर्मा जी विश्व के धर्मों के धारणकर्ता, देवशर्मा अर्थात देवब्राह्मण हैं और दया के भंडार हैं।





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